Sunday, January 13, 2008

उफ ये लोग़!

आज एक अज़ब बात हुई,
कट कर निकल जाते थे उन से बात हुई,
निकले तो थे अपने काम से,
और हमसे कटते-कटते टकरा गए,
जिन्हें न थी फरसत दिवाली तक की बधाई देने की,
आज हमारी दिनचर्या में शामिल हुए,
बस यूँ ही बाजार से लौटते वो हमसे टकरा गए
हमारा हाल तो छोडों सीधे मुद्दे पर आ गये,
इधर - उधर की बातों की फुरसत कहां,
वो तो बस अपनी कम्पनी की बुक पकडा़ गये
अब क्या कहें इन बड़े घर के लोगों को ,
हर जगह अपना काम निकाल लेते हैं,
जरूरत पड़ने पर ये क्या नहीं कर गुजरते ,
जैसे गधों को भी खास बना लेते हैं।

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